सतगुरु हाथ धरिया सिर पर सही सही नाम सुणाया जी
दोहा:
वेद शास्त्र और सन्त जन भाखे सत्संग सार,
बिन सत्संग इण जीव रो कैसे होवे उद्धार।
वेद शास्त्र और ग्रन्थ में बात मिली हैं दोय,
सुख दिया सुख आवे दुःख दिया दुख होय।
★★★
लिया भेख मर्दाना अवधु,
मन मेरा मस्ताना,
(मेरी भई मस्ताना नार गढ़
लियो भेष मर्दाना रे साधु
मेहर भई मस्ताना)
___________________________________
सतगुरु हाथ धरिया सिर ऊपर,
सही सही नाम सुणाया जी,
अमर जड़ी रा पीदा पियाला,
तूही तूही तार मिलाया जी,
लिया भेख मर्दाना अवधु,
मन मेरा मस्ताना ।
___________________________________
तीन गुणो री दाता रैण बणाई,
भिन्न भिन्न शिखर चढ़ाया जी,
यू करेन बाबे खबरो लीनी,
हक से हुक्म हलाया जी,
लिया भेख मर्दाना अवधु,
मन मेरा मस्ताना ।
___________________________________
पद्म सिंहासन निर्भय तकिया,
धिरप छतर झेलाया जी,
ससि भौण का चाढे सरोदा,
जुना पीर जगोया जी,
लिया भेख मर्दाना अवधु,
मन मेरा मस्ताना ।
___________________________________
अकल कला और बगतर टोपी,
खमियो रा खड़क समाया जी,
लेखड़ग ने खेतर ढलिया,
हेमर दूर हटाया जी,
लिया भेख मर्दाना अवधु,
मन मेरा मस्ताना ।
___________________________________
Comments
Post a Comment