साधु भाई सतगुरु साक भरेलो


 दोहा:

हंसा सरवर ना छोड़िये जो जल खारा होय,
सीलर सीलर भटकता  भला नी केवे कोय।

हंसा ज्यों सरवर जपे वन में जपे मोर,
 थो मन में ऐसे जपो जैसे छंद चिकोर।
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हड़दम ताल लगी गढ़ भीतर,

 नाभि से निगे करेलों, 

उल्टा बाण गिगन जाय लागा, 

झिल मिल जोग जगेलो! साधु-

भाई सतगुरु साक भरेलो।

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सिमरिया वे सन्त पार पोचिया, 

विन सिमरिया डूबेलो! साधु- 

भाई सतगुरु साक भरेलो।

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उपजिया अंणद गिगन जाय गर-

जिया अणहद नाद घुरेलो,

पीवत प्रेम विछड़ जाई काया, 

जीव पीव मिल रेलो! साधु- 

भाई सतगुरु पार करेलो ।

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सिमरिया वे सन्त पार पोचिया, 

विन सिमरिया डूबेलो! साधु- 

भाई सतगुरु साक भरेलो।

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त्रिवेणी जाय हंस विराजे, 

हीरो रो सर्वण चुगे लो,

मिट गई तास प्रेम सुख उपजे,

जुग जुग राज करेलो! साधु- 

भाई सतगुरु पार करेलो।

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सिमरिया वे सन्त पार पोचिया, 

विन सिमरिया डूबेलो! साधु- 

भाई सतगुरु साक भरेलो।

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जियाराम गुरू पुरा मिलाया,

सुन में वास वसेलो! कहे- 

बन्नानाथ सूणो भाई सन्तों,

 जुग से रहत अकेलो साधु-

भाई सतगुरु पार करेलो।

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सिमरिया वे सन्त पार पोचिया, 

विन सिमरिया डूबेलो! साधु- 

भाई सतगुरु साक भरेलो।

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