जोगियो पुरे परे रा वासी


 दोहा :

माला टोपी सिमरणा सतगुरु दी बख्शीस,
पल पल गुरू ने बंधगी चरण निवावु शिष।






जोग लिया तुम जीव नी जो-

णियो! क्यों फिरे उदियासी,

भुलोड़ा जीव प्रलागति जावे,

मोनखो जन्म कदे आसी,

जोगियों पुरे परे रा वासी।

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थोने सन्त वतावे जकी हासी,

जोगियो पुरे परे रा वासी।

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वेद शास्त्र भागवत गीता,

वताय वताय थक जासी,

पढ पढ कई नर मरगा, 

हरि हाथो कदे आसी, 

जोगियों पुरे परे रा वासी।

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थोने सन्त वतावे जकी हासी,

जोगियो पुरे परे रा वासी।

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हंस भी उठे तंत भी टूटे, 

बोलणा बकणा थक जासी,

ठ ठो नी ठहरे र रो नी रेवे,

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थोने सन्त वतावे जकी हासी,

जोगियो पुरे परे रा वासी।

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रघु राम मेरा गुरू पुरा,

दिया शब्द तपासी, 

दास पीतो गुरू रे शरणे, 

जोत में जोत मिल जासी,

जोगियो पुरे परे रा वासी।

★★★★






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