मन रे राम भजन करिये



दोहा:

माला वर्ष पचास री सत्संग की पल एक,
तोई बराबर तुले नहीं सुखदेव कियो विवेक।

सत्संग घर-घर नहीं नहीं घर घर गजराज,
सिंह का टोला नहीं नहीं चंदन को बाग।

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सतरी संगत रा मातम सुणिये, 

राम सभा तुम करिये, 

शुर वीरों रा एही है लक्षण, 

समझ समझ पग धरिये मन-

रे राम भजन तुम करिये। 

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हरि भजन रे कारणे, 

मिनखा देह धरी हैं मन- 

राम भजन तुम करिये।

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एकल रंगा एकल वरणा, 

एकता घाट घडिये तप-

 धारी रा देख तमाशा,

 खम्मा खम्मा करायें मन- 

राम भजन तुम करिये।

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हरि भजन रे कारणे, 

मिनखा देह धरी हैं मन- 

राम भजन तुम करिये।

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 सोनो चांदी पर्दे रखिये, 

लोहा चौक धरिए, 

काम पड़े झगड़े में जावो, 

शुर वीरों से अडिये मन-

 राम भजन तुम करिये।

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 हरि भजन रे कारणे, 

मिनखा देह धरी हैं मन- 

राम भजन तुम करिये।

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 दया गरीबी और आधी- 

नता पापी तो सब रूलिये, 

पुरख दास सन्तों रे चरणे, 

भव सागर सू तिरिये मन- 

राम भजन तुम करिये। 

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हरि भजन रे कारणे, 

मिनखा देह धरी हैं मन- 

राम भजन तुम करिये। 

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