एक मन राम सिवरो भाया



दोहा:

तुलसी मेरे राम को रिज भजो चाहे खीज,
 धरती पड़िया उगसी उल्टा सीधा बीज ।

काम करो ओधर भरो मुख से सिवरो राम,
ऐड़ा हौदा ना मिले करोड़ खर्च लो दाम ।
★★★





 साचे मन सायब ने सिमरो, 

सोजो सुन्दर काया,

त्रिवेणी रा रंग महल में 

सतगुरु अमि बरसाया एक 

मन राम सिवरो मेरा भाया। 

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सिवर सिवर फल पाया, 

सांचे मन राम सिवरो भाया।

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नव मुठ रा छड़ा बताया, 

पांचों बेल जोतराया,

 सतगुरु खिली शब्द वाली-

 दीनी प्रेम सदा ढलकाया,

 एक मन राम सिवरो भाया।

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सिवर सिवर फल पाया, 

सांचे मन राम सिवरो भाया।

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काया री वाड़ी सींचे वन-

माली वंक नाल रस लाया, 

इंच वाड़ी फूल अजब है, 

फल होशियारे पाया एक-

 मन राम सिवरो भाया। 

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सिवर सिवर फल पाया, 

सांचे मन राम सिवरो भाया।

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मकनो हाथी लाल उंबाड़ी 

गेरि डम वाली छाया वण

 छाया मारा श्याम विराजे पल-

पल दर्शन पाया एक मन-

राम सिमर मेरा भाया।

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सिवर सिवर फल पाया, 

सांचे मन राम सिवरो भाया।

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पैर पीताम्बर देव और दानव,

सब अण घर री माया,

अण अण घर रो पार नी- 

पायो सतगुरु गेला बताया,

 एक मन राम सिवरो भाया।

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सिवर सिवर फल पाया, 

सांचे मन राम सिवरो भाया।

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शरणो में आया बहुत सुख,

 पाया चरण कवल चितलाया,

गुरू प्रताप भणे माली लिखमो-

जी गंगा गरीबी नाया एक मन-

 राम सिमर मेरा भाया।

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 सिवर सिवर फल पाया, 

सांचे मन राम सिवरो भाया।

★★★★




















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