एक मन राम सिवरो भाया
दोहा:
तुलसी मेरे राम को रिज भजो चाहे खीज,
धरती पड़िया उगसी उल्टा सीधा बीज ।
काम करो ओधर भरो मुख से सिवरो राम,
ऐड़ा हौदा ना मिले करोड़ खर्च लो दाम ।
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साचे मन सायब ने सिमरो,
सोजो सुन्दर काया,
त्रिवेणी रा रंग महल में
सतगुरु अमि बरसाया एक
मन राम सिवरो मेरा भाया।
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सिवर सिवर फल पाया,
सांचे मन राम सिवरो भाया।
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नव मुठ रा छड़ा बताया,
पांचों बेल जोतराया,
सतगुरु खिली शब्द वाली-
दीनी प्रेम सदा ढलकाया,
एक मन राम सिवरो भाया।
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सिवर सिवर फल पाया,
सांचे मन राम सिवरो भाया।
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काया री वाड़ी सींचे वन-
माली वंक नाल रस लाया,
इंच वाड़ी फूल अजब है,
फल होशियारे पाया एक-
मन राम सिवरो भाया।
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सिवर सिवर फल पाया,
सांचे मन राम सिवरो भाया।
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मकनो हाथी लाल उंबाड़ी
गेरि डम वाली छाया वण
छाया मारा श्याम विराजे पल-
पल दर्शन पाया एक मन-
राम सिमर मेरा भाया।
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सिवर सिवर फल पाया,
सांचे मन राम सिवरो भाया।
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पैर पीताम्बर देव और दानव,
सब अण घर री माया,
अण अण घर रो पार नी-
पायो सतगुरु गेला बताया,
एक मन राम सिवरो भाया।
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सिवर सिवर फल पाया,
सांचे मन राम सिवरो भाया।
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शरणो में आया बहुत सुख,
पाया चरण कवल चितलाया,
गुरू प्रताप भणे माली लिखमो-
जी गंगा गरीबी नाया एक मन-
राम सिमर मेरा भाया।
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