शब्द सावरणी मारा सतगुरु दीवी
॥ दोहा ॥
सतगुरु बिन सोजी नहीं सोजी सब घट माय,
रजब मतिरा खेत में चिड़िया को गम नाय।
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शब्द छावरणी मारा सतगुरु,
दिनी पांच रे पच्चीस बोराया,
कर्मो रा लेख कछू नी टलिया,
मारा सतगुरु लिनी बड़ायो,
क्या करू तन त्यागी रे,
मारो मनड़ो भयो वैरागी,
राम जी से राम धुन लागी,
हरि हरि सु धुन लागी रे,
मारो जीवड़ो भयो वैरागी
हो वैरागी
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नाभि से नाव चली गिगनो,
में वटे चेतन लेर हलाया हे,
चेतन लेर चढ़ी सिर वंके,
धीरे धीरे घंटी बजाया,
क्या करू तन त्यागी रे,
मारो मनड़ो भयो वैरागी,
राम जी से राम धुन लागी,
हरि हरि सु धुन लागी रे,
मारो जीवड़ो भयो वैरागी,
हो वैरागी।
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गिगन मंडल में धुणा हमारा,
बिना अग्नि तप लाया हे,
बिना देवलिये देव परसिया,
वना भजिये फल पाया हे,
क्या करू तन त्यागी रे,
मारो मनड़ो भयो वैरागी,
राम जी से राम धुन लागी,
हरि हरि सु धुन लागी रे,
मारो जीवड़ो भयो वैरागी
हो वैरागी।
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तीन लोक रा तीर्थ मैं जाणु,
अगम तीर्थ जाए नाया हे,
झूठा तीर्थ करे अण जग,
में भूल गया भव सारा हे,
क्या करू तन त्यागी रे,
मारो मनड़ो भयो वैरागी,
राम जी से राम धुन लागी,
हरि हरि सु धुन लागी रे,
मारो जीवड़ो भयो वैरागी,
हो वैरागी।
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सतगुरु मारा सामर्थ है,
वे आदि अंत रा भागी,
रघुराम हंस साहेब शरणे,
अखंड अमर पद पाया हे,
क्या करू तन त्यागी रे,
मारो मनड़ो भयो वैरागी,
राम जी से राम धुन लागी,
हरि हरि सु धुन लागी,
मारो जीवड़ो भयो,
वैरागी हो वैरागी।
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