ओ तन पावणो रे बीरा मत कर
दोहा :
कबीरा गंदी देय का हमको भरोसा नाय,
काले मिलो बजार में फेर मसोणा माय।
आया हैं नर जायेगा राजा रंक फकीर,
कोई सिंहासन चढ़ चले कोई बंधे जंजीर।
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ओ तन पावणों रे बीरा,
मत कर मान गुमान,
परसु आज काल में थारो,
ओ छोड़ चले मेहमान,
ओ तन पावणों रे बीरा
मत करो मान गुमान।
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नदी नाला सब बिछडे,
बिसडीयो मिले ना थू
क्यों गाफल सोय रयो रे
समझ देख मन माय,
ओ तन पावणों रे बीरा,
मत करो मान गुमान।
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मौत खड़ी सिर ऊपरे रे,
जीवणो है जूठी आस,
क्या जानू कद आवसी,
सांस बटाऊ ड़ो वास,
ओ तन पावणों रे बीरा,
मत करो मान गुमान।
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सत्र सिंहासन छोड़ के-
बिरा मर मर गया रे अमीर,
अब तो बंदा चेत जा रे,
थारो कासों दाग़ शरीर,
ओ तन पावणों रे बीरा,
मत कर मान गुमान।
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झूठी जग री मोहनी,
जूठा तन धन धाम,
रामचरण अब चेत जा,
थोड़ो सुमर सनेही राम,
ओ तन पावणों रे बीरा,
मत कर मान गुमान ।
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परसो आज काल में थारो,
ओ छोड़ चले मेहमान,
ओ तन पावणो रे बीरा,
मत कर मान गुमान ।
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