अजर अमर घर पाया



दोहा:

कहे सन्त सगराम भजन री करडी घाटी,
आडा ऊबा पाप हाथ में लोम्बी लाठी,
लोम्बी लाठी हाथ में आगे बढ़न दे नाय,
जो दे आगो पामड़ो दे गाबड़ रे माय,
दे गाबड़ रे माय कमाई कीनी माठी, 
कहे सन्त सगराम भजन री करड़ी घाटी।
★★★





 अजर अमर घर ताली-

लागी गेबी नाद गुराया, 

सुण सुत मस्त हुआ मन, 

मेरा सत में रेवो समाया,

सन्तों अजर अमर घर पाया। 

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भया दीवाना हुआ मस्ताना, 

सब जग री राय भुलाया,

सन्तों अजर अमर घर पाया। 

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चौदह लोक काल का सारा, 

मड़े काल को खाया, 

काल अकाल दोनो थकिया, 

ऊण घर अलख जगाया सन्तों,

अजर अमर घर पाया। 

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भया दीवाना हुआ मस्ताना, 

जुग री राय भुलाया सन्तों, 

अजर अमर घर पाया।

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सतलोक में सत रा वासा, 

मोह ममता नी माया, 

चांद सुरज पवन नी पाणी,

 काल पता नी पाया सन्तों, 

अजर अमर घर पाया।

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भया दीवाना हुआ मस्ताना, 

जुग री राय भुलाया सन्तों, 

अजर अमर घर पाया।

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आपो आप और नी दुजा, 

नहीं धूप नहीं छाया, 

कहे हेमनाथ बेहद महिमा,

शायर लहर समाया सन्तों, 

अजर अमर घर पाया। 

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भया दीवाना हुआ मस्ताना, 

जुग री राय भुलाया सन्तों, 

अजर अमर घर पाया। 

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