थे मारे घर आवो नन्दलाला माखण मिश्री खावा ने



दोहा:

प्रभाते  उठ प्राणी  जपले  हरि  रा  जाप।
भूखा ने भोजन मिले गढ़ पतियों ने राज॥
प्रभाते  वहां जाविए  जहां बसे  ब्रजराज।
गऊं रस भेटन हरि मिले एक पंथ दो काज॥
★★★




थे मारे घर आवो नन्दलाला 

माखण  मिश्री  खावा  ने

___________________________

ऊंची मेड़ी लाल किवाड़ी 

फूलड़ो री सेज बिछावा ने

मारी गलियां रंग री रलिया 

और  गली  नहीं  जाना ने

थे मारे घर आवो नन्दलाला 

माखण   मिश्री   खावा  ने 

___________________________

साथिड़ा ने संग मत लाइजो 

नहीं है  माखन  खिलावा ने 

एक अंथणी कोरी राखु 

थाने  भोग  लगावा  ने

थे मारे घर आवो नन्दलाला 

माखण  मिश्री  खावा  ने 

___________________________

मैं जावा जल जमुना पाणी 

थे आइजो धेनु चरावण ने

तन मन री वातो रे करोला 

मती  केजो  थोरी मावड़ ने

थे मारे घर आवो नन्दलाला 

माखण  मिश्री  खावा  ने

___________________________


जल जमुना री इरा तीरा 

आइजो थे वटे नावण ने

चंद्रचखी भज बाल कृष्णछवि 

गोविंद  रा  गुण  गावण ने

थे मारे घर आवो नन्दलाला

 माखण मिश्री खावा ने।

★★★★★

Comments

Popular posts from this blog

वायक आया गुरुदेव रा रूपा जमले पधारों/ लिरिक्स भजन

साधु भाई सतगुरु साक भरेलो

गोविन्द रा गुण गाय बन्दा उमर जावे