थे मारे घर आवो नन्दलाला माखण मिश्री खावा ने
दोहा:
प्रभाते उठ प्राणी जपले हरि रा जाप।
भूखा ने भोजन मिले गढ़ पतियों ने राज॥
प्रभाते वहां जाविए जहां बसे ब्रजराज।
गऊं रस भेटन हरि मिले एक पंथ दो काज॥
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थे मारे घर आवो नन्दलाला
माखण मिश्री खावा ने
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ऊंची मेड़ी लाल किवाड़ी
फूलड़ो री सेज बिछावा ने
मारी गलियां रंग री रलिया
और गली नहीं जाना ने
थे मारे घर आवो नन्दलाला
माखण मिश्री खावा ने
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साथिड़ा ने संग मत लाइजो
नहीं है माखन खिलावा ने
एक अंथणी कोरी राखु
थाने भोग लगावा ने
थे मारे घर आवो नन्दलाला
माखण मिश्री खावा ने
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मैं जावा जल जमुना पाणी
थे आइजो धेनु चरावण ने
तन मन री वातो रे करोला
मती केजो थोरी मावड़ ने
थे मारे घर आवो नन्दलाला
माखण मिश्री खावा ने
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जल जमुना री इरा तीरा
आइजो थे वटे नावण ने
चंद्रचखी भज बाल कृष्णछवि
गोविंद रा गुण गावण ने
थे मारे घर आवो नन्दलाला
माखण मिश्री खावा ने।
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