ऐड़ा मिनख जग माहीं सन्तों

 कुकर  कपुर वासना तज   दे खर  मिश्री ना  खाई जी 

ले पकवान सिंह आगे धरिया सिंह भोजन ना खाई हो,जी.

ऐड़ा मिनख जग माहीं सन्तों ऐड़ा मिनख जग माहीं जी

सांचा गुरु री संगत ना किदी भटकत जन्म गंवाई हो, जी.


काली ऊन  सदा रंग काली  ले साबुन  ने धोई जी 

ऊपरलो  रंग परो उतरे  अंग रंग कहां  जाई  हो,जी.

ऐड़ा मिनख जग माहीं सन्तों ऐड़ा मिनख जग माहीं जी

सांचा गुरु री संगत ना किदी भटकत जन्म गंवाई हो, जी.


भागे  कांच रे सांधो नी  लागे कर  कीमत ने जोई जी 

ले होर अग्नि पर धरिया मिलता ही उड़ जाई हो, जी. 

ऐड़ा मिनख जग माहीं सन्तों ऐड़ा मिनख जग माहीं जी

सांचा गुरु री संगत ना किदी भटकत जन्म गंवाई हो, जी.




मणिधारी री गत वोही जाणे पलडोतियो ने गम नाई जी 

कर कीमत बाजीगर पकड़ें पकड़त झपट लागाई हो जी

ऐड़ा मिनख जग माहीं सन्तों ऐड़ा मिनख जग माहीं जी

सांचा गुरु री संगत ना किदी भटकत जन्म गंवाई हो, जी.


पियाराम  मलिया गुरू  पुरा वो  माने  राय बताई जी

रामलाल गुण पंडित गावे विष अमृत ना होई हो,जी.

ऐड़ा मिनख जग माहीं सन्तों ऐड़ा मिनख जग माहीं जी

सांचा गुरु री संगत ना किदी भटकत जन्म गंवाई हो, जी.

 

भावार्थ: 

सन्तो ने कहां हैं कुकर (कुत्ता) कपुर वासना तज दे कुत्ते के आगे अगर कपुर रख दें तो  कपुर की सुगंध आते ही भाग जायेगा, खर (गधा) के आगे आप मिश्री (नवाज) रख लें तो वह कभी नहीं खायेगा ! सन्तों ने मनुष्य को समझाते हुए कहा जिस तरह कुत्ता कपुर की सुगंध से और मिश्री से भागता है उसी तरह इंसान सत्कर्म से भागता है ! बुराई को गले लगाता है,ऐसे मानव को सच्चे गुरू के ज्ञान की शख्त जरूरत है गुरू के बिना वह मनुष्य दुनिया में भटकता ही फिरता है इससे मानव जीवन पुरा व्यर्थ हो जाता है।

काली ऊन हमेशा काली ही रहती है उस पर ज़्यादा साबुन प्रयोग कर लो तो थोड़ा कलर में चेंजेंस होगा वैसे ही मानव बाहर बाहर कितना भी अच्छा बन जाए यदि भीतर का कलर काला है तो जीवन पुरा काला ही होता है। ऐसे लोगों से दूर 

अगली कड़ी में सन्तों ने कहा हैं यदि आइना (कांच) टूट जाए तो वह वेल्डिंग (जोड़) नहीं होता एक आइने के दो टुकडे़ हो जाए तो उसमें दो चेहरे नजर आते हैं उसी तरह जीवन में मानव के अलग अलग कई चेहरे नजर आते हैं जिस तरह होर (पटाखो में डालने वाला) अग्नि में डालते ही विस्फोट होता है ऐसे ही हम पता ही नहीं रहता जीवन में होर को अग्नि में डालने जैसा काम कर देते हैं जीवन खराब हो जाता है।

मणिधारी 100 में से एक सर्प होता हैं उसे कहते हैं अच्छे कर्मों से जब उम्र से ज्यादा जी लेता है तो उसके सिर पर एक मणि आ जाती है इसलिए उसे मणिधारी कहा जाता है जब तक वह जीवित है तब तक उस मणि को कोई छीन नहीं सकता इस मणि का महत्व उसी को पता रहता है आम सर्पों को इसकी खबर नहीं होती है। यानि मानव यदि सत्कर्म भक्ति कर ले तो उसकी तलाट में एक ऐसा मणि के जैसा तेज आ जाता है उसकी कीमत और उस तेज का आभास वह स्वयं ही कर सकता हैं,इसके लिए सर्वप्रथम गुरू की शरण जरूरी है।

रामलालजी कहते हैं मेरे गुरू पियाराम जी ने ही मुझे यह रास्ता (राय) बताया हैं कि एक कटोरे में अमृत एक में जहर (विष) रख लेना कुछ महिनों बाद अमृत जहर बन जाएगा मगर जहर कभी अमृत का रूप नहीं ले सकता यानि ऐसे इंसानों से सदा दूर रहें जो इसी जहर के सम्मान हैं जो अमृत  जैसे इंसान को अपनी संगत से जहर बना देते हैं।


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