प्रणाम गुरूदेव जी ने बारम्वार

गुरू ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरा:,
गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।

परमेश्वर से गुरू बड़े तुम देखो वेद पुराण,
सेक फरीदा यूं कहे गुरू घर हैं भगवान।



 प्रणाम गुरूदेव जी ने बारम्वार,

बारम्वार मेरी घणी घणी वार,

प्रणाम गुरूदेव जी ने बारम्वार ।

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एक पारी ब्रह्मा री रूप चतुधर,

लीला     किनी रे     अपार,

प्रणाम गुरूदेव जी ने बारम्वार।

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ब्रह्मा रूप धर वेद प्रकट कर,

रचियो    सकल      संसार,

प्रणाम गुरूदेव जी ने बारम्वार।

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विष्णु रूप धर विश्व रो-

 पालन धर्म  हेत अवतार,

प्रणाम गुरूदेव जी ने बारम्वार।

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रूद्र रूप धर दुष्ट रूलावन,

पल    में   करत      संहार,

प्रणाम गुरूदेव जी ने बारम्वार।

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अचलुराम जिवा रे हित कारा

गुरू   मुरती   लिया   धार 

प्रणाम गुरूदेव जी ने बारम्वार 

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भावार्थ :

अचलुराम जी कहते हैं तीनों देव ब्रह्मा विष्णु महेश ने मिलकर इस पृथ्वी पर मानव और उसके जीवन के लिए भिन्न भिन्न कार्य जिम्मा उठाया ।

प्रथम पहर में भगवान ब्रह्मा जी ने चतुधर का रूप कर अपनी लीला से वेदो की उत्पत्ति की, जिससे मानव का नियमानुसार का कार्य चलता रहें इसलिए ब्रह्मा जी दुनिया के संचालन करने वाले हुएं ।

भगवान विष्णु को पुरे विश्व का पालन करने कार्य दिया गया,  आज भी मानव के भरण पोषण का जिम्मा भगवान विष्णु के पास है। इसलिए भगवान विष्णु संसार के ओपरेटर हुएं।भगवान शंकर को रूद्र भी कहां जाता है यानि दुष्ट राक्षसों का विनाश (संहार) करने का कार्य भगवान शंकर ने अपने हाथों में लिया । 


अंत में अचलुराम जी कहते हैं मानव जीवन में इस जीव का उद्धार करना हैं तो आपको गुरू का चरण लेना आवश्यक है।

क्यूं कि हमारे शरीर में बंधन के अलग अलग ताले लगे हैं जिसकी चाबी गुरू के पास होती है, जिस तरह बिना ताला खोले आप घर के अंदर नहीं जा सकते उसी तरह हमारा शरीर भी ताले से बंद हैं जब तक नहीं खुलेगा तब तक हम परमात्मा का आभास भी नहीं कर सकते ।









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