कैलाश वासी शिव सुखराशि

शिव समान दाता नहीं सब दुख भंजन हार,
लज्जिया मारी राखियो शिव नंदी के असवार।
लाल नेत्र गोरे बदन शिव भस्म रमावे अंग,
शिवजी थोरी जटा में बह रही से गंग,
बह रही से गंग संग भूतन का टोला,
पार्वती के पीवं शिव पियो भंग का गोला।


कैलाशवासी शिवसुख राशी,

सुनते नाथ सबकी करूणा,

मन की दुविधा दूर करो,

बम भोलेनाथ का लो चरणा।

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 एक समय दानव सुर मिलकर,

क्षीर सागर का मंथन किया,

रत्न चौदहा निकले सिरोमणी,

एक एक सब ने बांट दिया,

अमृत धारण कियो देवता,

जहर हलाहल शिव ने पिया,

निलकंठ ज्यारो नाम धरायो,

कैलाश का रसपान किया,

भोले भंडारी शंकर देवा,

नाम निरंतर नित जपना,

मन की दुविधा दूर करो,

बम भोलेनाथ का लो चरणा।

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अटल भक्ति भस्मासुर किनी,

बारहा मास तप लागो करण,

तन अपणो सब तास बगायो,

कैलाश छोड़ दीना दर्शन,

मांगना है सो मांग भक्त,

मैं बहुत हुआ तुझ पे प्रसन्न,

देऊ राज तोय इंद्रलोक रो,

रेवे देवता तेरी शरण,

वर दो हाथ देवा सिर ऊपर,

तुरंत होवे उसका मरणा,

मन की दुविधा दूर करो,

बम भोलेनाथ का लो चरणा।

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डिगि नियत वर पाय निच्शर,

की काये न शंकर को मारा,

आगे आगे भागे विसमंबर,

बैकुंठ धाम का लिया सहारा,

खगपति चौकी देख नाग,

उतर गया कोपिन वारा,

देख दिगम्बर रूप भोले का,

लक्ष्मी ने मुख पट डारा,

ब्रह्मा विष्णु महेश एक हैं,

नहिं इण में अंतर करना,

मन की दुविधा दूर करो,

बम भोलेनाथ का लो चरणा।

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करूणा निधान भगवान विष्णु,

तुरंत मोहिनी रूप धरे,

मोह लिया निश्चर के मन को,

फिर बोले यूं वचन खरे,

आक धतुरा पीने वाले,

क्या इनका विश्वास करें,

जो सिर अपने हाथ धरे तो,

साच झूठ री ख़बर पड़े,

चकित भये शिव अपने मन में,

देखा निश्चर का मरना,

मन की दुविधा दूर करो,

बम भोलेनाथ का लो चरणा।

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रत्न जड़ित कैलाश शंभू का,

मणि जड़ित रहे साजा,

आक धतुरा हरियल हरियल, 

सब पक्षी रहते ताजा,

वाहन जिनका स्वेत नादियां,

सब देवों के हैं राजा,

काम धेनु कल्प वृक्ष है,

डमरू के बाजे बाजा,

हीरालाल यूं केवे शिवजी,

लिपटा लो अपनी चरणा,

मन की दुविधा दूर करो,

बम भोलेनाथ का लो चरणा।

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कैलाशवासी शिवसुख राशी,

सुनते नाथ सबकी करूणा,

मन की दुविधा दूर करो, 

बम भोलेनाथ का लो चरणा।

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