सीताजी ने कौण हरी/ रामायण भजन
मारा लक्ष्मण भैया सीताजी ने कौण हरी-२
सीताजी ने कौण हरी-२ ॥टेर॥
मारा छोटे भाई सीताजी ने कौण हरी ।
उड़ उड़ काग लक्ष्मण कुटिया पर बोले,
कुटिया सूनी रे पड़ी ।
मारा छोटे भाई सीताजी ने कौन हरी-२
लावो लकड़ियां लक्ष्मण करो उजियारा,
पगलियां जोवो तो खरी ।
मारा लक्ष्मण भाई सीताजी ने कौन हरी-२
सीताजी रो हरणो लक्ष्मण पिताजी रो मरणो,
दोय-दोय विपत पड़ी ।
मारा लक्ष्मण भाई सीताजी ने कौण हरी-२
केतो आयो लक्ष्मण लंकापति रावण,
के कोई सिंहडे़ चढ़ी ।
मारा लक्ष्मण भाई सीताजी ने कौण हरी-२
तुलसीदास प्रभु आस रघुवर की,
सीताजी री ख़बर पड़ी ।
मारा लक्ष्मण भाई सीताजी ने कौण हरी-२
सीताजी ने कौण हरी-२ ॥टेर॥
मारा लक्ष्मण भाई सीताजी ने कौण हरी-२ ।
भावार्थ :
जब श्री राम मृग के पिछे और माता सीता के कहने पर लक्ष्मण श्री राम के पिछे चले जाते हैं इतने में रावण आकर सीता का हरण कर चला जाता हैं जब दोनों भाई कुटिया की और बढ़े रास्ता लम्बा था आकर देखा तो झोपड़ी पर एक कौआ जोरो से बोल रहा था, तब भगवान माता सीता को कुटिया में ना पाया तो इधर उधर ढूंढने लग जाते हैं, आवाज लगाते हुए लक्ष्मण से कहते हे मेरे भाई अंधेरा होने वाला है और सीता कहां गई ।
लक्ष्मण लड़कियां जलाओ उजाला करो ताकी सीता के पैरो निशान हमें दिखे वक्त बीतता जा रहा था भगवान मन ही मन ढूंढते ढूंढते रो रहे थे जब हर कोशिश की मगर सीता का पता नहीं चला तब भगवान अपना दुःख लक्ष्मण से बताते हैं हे भाई कुटिया में अकेली जानकी को देख किसी वन्य सिंह ने हमला ना कर दिया हो ।
और सीता खोजते खोजते वन वन भटकते हैं तब उनका मिलन एक गरूड़ राज से होता है उसने सारी बात बताई दशानन रावण ने मां सीता हरण किया हैं, भगवान दुःख के साथ कहते हैं इधर सीता का हरण उधर अयोध्या में पिताजी का मरण, हे लक्ष्मण यह कैसी हम पर दुखद घड़ी आ गई।
थोड़े दिन बाद राह में सबरी भिलणी की की झोपड़ी तक पहुंच जाते हैं जो बरसों से भगवान राम की राह देख रही होती है।
इसके आगे का भजन भी अंदर अवश्य देखें ।
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