मारा सतगुरू कृपा किनी
गुरू सम्मान दाता नहीं याचक शिष्य समान,
तीन लोक री सम्प्रदा पल में कर दी दान।
गुरू बिन माला फेरता गुरु बिना देता दान,
नहीं हैं दान काम का देखो वेद पुराण।
मारा सतगुरू कृपा किनी,
मने जड़ी भजन री दीनी,
सुतोड़ी सुरता जागी आ,
जाग भजन में लागी।
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मैं भुल भ्रम में फिरतो,
कियो भजन रे भलतो,
मारा भाग पुरबला जागा,
चित शब्दों में लागा,
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मैं गुरू सेवना किनी,
मने सिमरण कुसी दीनी,
खुलिया भ्रम रा ताला,
ह्रदय भया उजियारा।
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राम भजन में राजी जोरी,
हरि राखेला बाजी,
सतगुरू रो चरणों लिनो,
मैं प्यालों प्रेम रो पीनो।
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झिल मिल झलके ज्योति,
मैं निरख लिया निज मोती,
ए आदूराम जी रा हेला,
भाई भरो भजनों रा थेला।
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