भक्ति रो बाग लगावो (वाणी भजन)
दोहा:
भक्ति भाव से ऊपजे और नहीं भक्ति के वंश।
हिरणाकुश घर प्रहलाद जन्मियो अग्रसेन घर कंस॥
भक्ति रो बाग लगावो
हीरा निपजे अणहद पार-२
मोती निपजे अणद अपार-२
भक्ति रो बाग लगावो।
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काया मइली जमी जगावो-२
ओम सोम धोणी जोतरावो-२
जम सुखमण बीज बवाव
भक्ति रो बाग लगावो।
हीरा निपजे अणहद पार
मोती निपजे अणद अपार
भक्ति रो बाग लगावो।
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मन माली ने रख दो हाली-२
वो करें बागों री रखवाली-२
करें बाग री सेव
भक्ति रो बाग लगावो।
हीरा निपजे अणहद पार
मोती निपजे अणद अपार
भक्ति रो बाग लगावो।
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इण काया में वसियो ठाकर-२
ज्यो री किजो नेचे साकर-२
थारे मिटे जमो रो दांव
भक्ति रो बाग लगावो।
हीरा निपजे अणहद पार
मोती निपजे अणद अपार
भक्ति रो बाग लगावो।
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