भक्ति रो बाग लगावो (वाणी भजन)

 दोहा:

भक्ति भाव से ऊपजे और नहीं भक्ति के वंश।
हिरणाकुश घर प्रहलाद जन्मियो अग्रसेन घर कंस॥


भक्ति रो बाग लगावो 

हीरा निपजे अणहद पार-२

मोती निपजे अणद अपार-२

भक्ति रो बाग लगावो‌।

________________________________


काया मइली जमी जगावो-२

ओम सोम धोणी जोतरावो-२

जम सुखमण बीज बवाव 

भक्ति रो बाग लगावो।

हीरा निपजे अणहद पार

मोती निपजे अणद अपार

भक्ति रो बाग लगावो‌।

________________________________

मन माली ने रख दो हाली-२

वो करें बागों री रखवाली-२

करें बाग री सेव

भक्ति रो बाग लगावो।

हीरा निपजे अणहद पार

मोती निपजे अणद अपार

भक्ति रो बाग लगावो‌।

________________________________


इण काया में वसियो ठाकर-२

ज्यो री किजो नेचे साकर-२

थारे मिटे जमो रो दांव

भक्ति रो बाग लगावो।

हीरा निपजे अणहद पार

मोती निपजे अणद अपार

भक्ति रो बाग लगावो‌।

________________________________


धनसुखराम बधावो गावे-२ 

हरिजन कोई बाग लगावे-२

ज्योरी आवागमन मिट जाए

भक्ति रो बाग लगावो।

हीरा निपजे अणहद पार

मोती निपजे अणद अपार

भक्ति रो बाग लगावो‌।

Comments

Popular posts from this blog

वायक आया गुरुदेव रा रूपा जमले पधारों/ लिरिक्स भजन

साधु भाई सतगुरु साक भरेलो

गोविन्द रा गुण गाय बन्दा उमर जावे